पहले रॉकेट और सेटेलाइट बैलगाड़ी और साइकिल पर आये थे !!

दोस्तों क्या आप जानते हैं की भारत का पहला रॉकेट एक साइकिल पर और पहला सेटेलाइट एक बैलगाड़ी पर ट्रांसपोर्ट किया गया था? दोस्तों भले ही आज भारत के स्पेस साइंटिस्ट अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह पर सेटेलाइट भेजने में सफल हो गए हों लेकिन शुरुआत में भारत के वैज्ञानिकों के सामने ढेरों चुनौतियाँ थी। भारत की स्पेस एक्सप्लोरेशन की शुरुआत 1962 में विक्रम साराभाई की एक नामुमकिन से लगाने वाले सपने के साथ शुरू हुई थी।

विक्रम साराभाई ने ही रूस के स्पुतनिक लांच के बाद नेहरू सर्कार को स्पेस एक्सप्लोरेटरी प्रोग्राम्स की इम्पोर्टेंस समझायी थी जिसके बाद डॉ. साराभाई की अध्यक्षता में नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च का या फिर इंकसपर का गठन किया गया था। फिर इंकसपर का नाम 15 अगस्त 1969 को बदल कर इसरो कर दिया गया। लेकिन दोस्तों आपको जानकर हैरत होगी की हमारे वैज्ञानिक अपने पहले सफर में आसमान को मुट्ठी में करने के लिए साइकिल और बैलगाड़ी के जरिए निकले थे।

भारतीय वैज्ञानिक अपने पहले रॉकेट को साइकिल पर लादकर प्रक्षेपण स्थल पर ले गए थे। इस मिशन का दूसरा रॉकेट काफी बड़ा और भारी था जिसे बैलगाड़ी के सहारे प्रक्षेपण स्थल पर ले जाया गया था। इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है की भारत ने पहले रॉकेट के लिए नारियल के पेड़ों को लांचिंग पैड बनाया था। उस समय इसरो के पास अपना दफ्तर भी नहीं था एक कैथोलिक चर्च सेंट मैरी को मुख्य कार्यालय के रूप में इस्तेमाल करके हमारे वैज्ञानिक सारी प्लानिंग किया करते थे। निश्चित ही एक साइकिल पर राकेट ढोने से लेकर चाँद और मंगल तक का इसरो का सफर किसी करिश्मे से काम नहीं।

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