पाकिस्तानी टैंको को उड़ाने वाले शहीद अब्दुल हमीद

दुनिया की हर जंग का नतीजा हार या जीत ही होता है.. लेकिन ये एक ऐसा युद्ध था जिसमें पूरी दुनिया एक तरफ से कह रही थी कि पाकिस्तान की जीत तय है । paksitan की सेना अपने साथ अमेरिकी पैटन tanks लाई थी और इनके बल पर ही वो दम भर रही थी lekin उन्होंने सोचा भी नहीं था कि भारतीय सेना का सिर्फ एक जवान ही अपनी अकेली रायफल के साथ उसकी पूरी सेना को हिलाकर रख देगा। ‘सितंबर 1965 भारत-पाकिस्तान का युद्ध ऐसी ही वीरगाथाओं से भरा पड़ा है।’

भारत और पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ चुकी थी, सीमा के पास अचानक भारतीय सैनिकों को पाकिस्तानी टेंकों के आने की आवाज सुनाई देती है। बॉर्डर से सिर्फ 30 मीटर की दूरी पर Quarter Master अब्दुल हमीद हाथ मे राइफल लिए अपनी जीप में छुपे बैठे थे। फिर कुछ ऐसा हुआ कि जिससे पाकिस्तानी सेना में भगदड़ मच गई।

1965 के युद्ध मे भारत-पाकिस्तान आमने सामने थे। सेकंड वर्ल्ड war के बाद ये दूसरा ऐसा युद्ध हो रहा था जिसमें टैंकों से लड़ाई लड़ी जा रही थी। पाकिस्तान के पास मॉडर्न अमेरिकी पैटन टैंक थे, जिसके मुकाबले भारत के पास ब्रिटेन में बने सेंचुरिअन और दूसरे विश्व युद्ध के शरमन टैंक ही थे। पाकिस्तान की फर्स्ट आर्म्ड डिविजन ने करीब 200 टैंकों के साथ भारतीय सेना पर हमला बोल दिया था।

भारत पाकिस्तान का युद्ध:

दुश्मन के टैंक और सेना बॉर्डर से 10-12 किलोमीटर तक भारत में घुस आई थी। भारत में विद्रोह भड़काने की कोशिश के तहत पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर चलाया जिसके तहत पाकिस्तानी सेना ने जम्मू कश्मीर के कई हिस्सों में लगातार घुसपैठ शुरू कर दी थी। पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए गोरिल्ला हमले की योजना बनाई थी जिसे अंजाम देने के लिए 30 हजार छापामार हमलावरों को पाकिस्तान में ट्रैनिंग दी गई थी। सितंबर की 7 तारीख को को पाक सेना ने हमला कर दिया। भारतीय सेना के जवान भी उनका मुकाबला करने के लिए खड़ी हो गई.

उस वक्त वीर अब्दुल हमीद पंजाब के तरण-तारण (Tarn Taran) में सेना की frontline में तैनात थे। सुबह 9 बजे वो चीमा गाँव के बाहर एक गन्ने के खेत के बीच में अपनी जीप में बैठे थे। जब उनको tanks की आवाज सुनाई दी। वो घात लगाए इंतज़ार कर रहे थे और जब tanks उनको दिखाई देने लगे तब उन्होंने अपनी रेंज में आते ही Recoilless rifle से फायर कर दिया। माँ भारती के सपूत वीर अब्दुल हमीद के पास न ही tank था और न ही कोई बड़ा हथियार। उनके पास था सिर्फ देश के लिए मर मिट जाने का जज्बा। अब्दुल हमीद सिर्फ अपनी रायफल लिए पेटन tanks के सामने सीना तान कर खड़े हो गये। उन्होंने tanks के कमजोर हिस्सों पर वार किया और एक के बाद उन्होंने सामने आये सभी tanks को तबाह कर दिया।

उनका हौसला देखकर बाकी सैनिकों की भी हिम्मत बढ़ गई और देखते ही देखते पाकिस्तान की फौज में भगदड़ मच गई। अब्दुल हमीद ने 7 पेटन टैंकों को उड़ा दिया था, पता ही नहीं लगा कि जिन टैंक्स के दम पर पाकिस्तान जंग जीतने के मंसूबे पाल बैठा था वो कब पाकिस्तानी सेना की कब्रगाह बन गए ।
अब्दुल हमीद देशभक्ति का जज्बा लिए आगे बढ़ते जा रहे थे और मौत की परवाह किए बिना अपने दुश्मनों को ढेर कर रहे थे लेकिन इसी दौरान जब एक और टैंक को वो अपना निशाना बना रहे थे तभी वो एक पाकिस्तानी टैंक की नजर में या गये। दोनों तरफ से एक साथ फायर हुआ उस टैंक के परखच्चे उड़ गये लेकिन उसी वक्त वीर अब्दुल हमीद भी वहीं शहीद हो गये। 10 सितंबर 1965 का वो दिन था जब देश के वीर सपूत अब्दुल हमीद को हमने हमेशा के लिए खो दिया। इस लड़ाई में एक मामूली गन माउंटेड जीप से टैंक तबाह हो गये जिसके बाद अमेरिका में उन टैंक्स की डिजाइन की कमजोरियों पर दोबारा काम किया गया। इस लड़ाई में पाकिस्तान की तरफ से 70 से भी ज्यादा पेटन टैंक्स मैदान में उतारे गये थे। शहादत के बाद उन्हें सर्वश्रेष्ठ परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

इसके बाद भारतीय सेना ने रणनीति के तहत पाक सेना के रास्ते में एक नहर तोड़ दी और दुश्मन सेना के कई पैटल टैंक कीचड़ में फंस गए थे। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी टैंकों को ध्वस्त कर कई सैनिकों को बंदी भी बना लिया था। वहीं, कई पाकिस्तानी सैनिकों को वापस भागना पड़ा था।

 

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