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IBM और Coca cola को भारत से भागना क्यों पड़ा

आजादी के बाद से हर साल भारत नये कीर्तिमान बना रहा था. देश के पहले प्रधानमंत्री देश में नई टेक्नॉलजी को लाना चाहता थे। कई विदेशी कंपनियों ने भी अब इन्वेस्ट करना शुरू कर दिया था… IBM जैसी कंपनी ने आजादी के बाद ही भारत में पैर पसारने शुरू कर दिए थे। फिर ऐसा वक्त आया जब IBM के रेलवे के साथ लेन-देन में बड़ी हेरफेर सामने आई। एक के बाद एक परत खुल रही थी और सब हैरान थे कि इतनी बड़ी कंपनी कैसे सरकार को बेवकूफ बना रही थी। ये एक ऐसा घोटाला था जिसने भारतीय राजनीति को अन्दर तक हिला दिया था,, क्या हटा इस घोटाले में और कौन कौन शामिल थे इस धोखाधड़ी में ? जानकर आपके होश उड़ जाएँगे.

साल 1992 में भारत कंप्युटर युग में एंट्री कर रहा था। इसी समय में भारत में आईबीएम और कोका कोला नाम की दो कम्पनियों ने अपने कदम रख दिए थे। दुनिया की सबसे बड़ी companies में से एक IBM को अब भारत में अपने competitors का सामना करना पड़ रहा था। इस समय तक wipro भी IT सेक्टर में उभर रही थी जो IBM को सीधी टक्कर दे सकती थी। वहीं कोका cola भी दोबारा वापसी के लिए तैयार थी लेकिन उसके सामने मार्केट में कई और सॉफ्ट ड्रिंक्स जैसे पेप्सी और campa cola ने बड़ी पैठ बना ली थी। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि दोबारा इन companies को भारत में अपनी पकड़ बनाने के लिए इतनी जद्दोजहत करनी पड़ी। इसके लिए वापस चलना पड़ेगा 1952 में जब IBM ने पहली बार भारत में एंट्री की थी।

उस दौर में कंप्युटर का काम न के बराबर था। सिर्फ IIT, IIM के रिसर्च के काम के लिए इसकी जरूरत पड़ती थी। 2 दशक से भी ज्यादा के समय तक रोजगार और कारोबार दोनों में बढ़ोत्तरी हो रही थी। 1973 आते-आते देश एक बड़ी शक्ति की तरह उभर रहा था।

अब विदेशी companies को 60 % हिस्सेदारी भारत को देनी थी क्योंकि FERA यानी फ़ॉरेन एक्सचेंज रेग्युलेशन ऐक्ट में बदलाव हुए थे। जिसके बाद मालिकाना हक भारत के पास आ जाता। लेकिन इस वक्त IBM और railways के बीच हुए लेनदेन में इतनी बड़ी गड़बड़ दिखी कि संसद की पब्लिक एकाउंट्स कमिटी, PAC को IBM पर एक लीगल जांच ही बैठानी पड़ी। इस जांच में ऐसे खुलासे हुए कि इसने IBM को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया। लेकिन ऐसा हुआ क्या?

उस समय में भारत में 160 कंप्युटर IBM के थे जिसे भारत ने लीज़ पर ले रखा था। हर महीने का IBM, भारत से 50 हजार रुपए किराया लेती थी। अमेरिका से आने वाले ये कंप्युटर पुणे के प्लांट में असेंबल किये जाते थे और प्रॉफ़िट मार्जिन का कोई हिसाब किताब कहीं नहीं था। सरकार को शक हुआ और जांच बैठी उसमें पता लगा कि IBM अमरीका से पुराने rejected सिस्टम को भारत में किराये पर दे रही थी। जिससे ये कंपनी यहाँ से लाखों अपनी जेब में कर रही थी। इसके बाद आईबीएम का भारत से जाना तय था लेकिन उसका कोई ऑप्शन available नहीं था इसलिए computer का इस्तेमाल करने वाली कई कंपनियां भी  घबरा चुकी थी।

वहीं दूसरी तरफ कोका cola हमेशा अपनी secret रेसपी की बात करती रहती थी और इसी से जुड़ी थी उसकी सबसे बड़ी दिक्कत। कोका cola नहीं चाहती थी कि ये रेसपी बाहर आये और आज भी उसने इसे छुपा के रखा है। कोका cola ने अपनी कांच की बोतल को पेटेंट कर रखा है उसी तरह वो रेसपी को भी पेटेंट कर सकता है लेकिन फिर भी इस कंपनी ने ऐसा नहीं किया। जब भारत में FERA कानून आया तो कोका कोला को लगा कि उसकी secret रेसपी बाहर आ जाएगी क्योंकि इसे अमेरिका से इम्पोर्ट करना होता था और नये नियम में 60% हिस्सेदारी भी भारत की कंपनी को देनी होती तो उनको कई और इनफार्मेशन भी शेयर करनी पड़ती जिसे कोक बिल्कुल शेयर नहीं कर सकती थी। 1978 में कोका cola और IBM दोनों ने इस कानून को मानने से अच्छा समझा कि भारत से अब निकला जाए लेकिन IBM के जाने के बाद विप्रो को मार्केट में स्पेस मिला।

90 के दशक में कोका कोला और IBM ने रीएंट्री की। दोनों ही कंपनी के सामने मार्केट में कई competitors थे लेकिन आज कोका कोला और IBM किसी पहचान का मोहताज नहीं हैं।

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