नेहरू और जिन्ना की दुश्मनी जिसने बंटवारा करा दिया

नेहरू और जिन्ना की दुश्मनी: 200 साल अंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियों में बंधे रहने के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत देश आजादी की सुबह देखने वाला था लेकिन इस खुशी के साथ एक खबर और थी कि देश अब दो हिस्सों मे बंट जाएगा.. जिसमें एक होगा हिंदुस्तान और दूसरा पाकिस्तान। बंटवारे की आग मे लाखों घर जल गये और न जाने कितनी जानें चली गई। बंटवारे के इस वक्त में मोहम्मद अली जिन्ना को मुस्लिमों का लीडर मान लिया गया था वहीं नेहरू पूरी तरह secular थे । नेहरू और जिन्ना एक दूसरे के विरोधी थे, दोनों ही एक दूसरे के तौर तरीकों से परहेज करते थे, लेकिन आखिर ऐसा क्या हो गया कि इन दो अलग विचारधारों ने एक देश के दो टुकड़े करवा दिए?

आजादी के समय सत्तर छू रहे जिन्ना जितने दुबले-पतले और कमज़ोर थे, नेहरू उतने ही फुर्तीले और जिंदादिल थे. पूरी उम्र रोज़ दो पैकेट सिगरेट पीने वाले जिन्ना अब चलने पर हाँफने लगते थे. जिन्ना की छह फ़ीट की काया का वज़न था मात्र 63 किलो . एक वक्त था जब उनको किसी हीरो से कम नहीं समझा जाता था। लेकिन 40 आते-आते उनके बाल पक चुके थे। वहीं नेहरू के भी बाल झड़ने लगे थे जिसे छिपाने के लिए वह गांधी टोपी लगाने लगे थे।

जिन्ना और नेहरू कितने अलग थे इस बात का अंदाज यूं लगाया जा सकता है कि जिन्ना अक्सर अपने प्रतिद्वंदियों की कमियों को समझकर उन्हें झुकने पर मजबूर कर देते थे. वो नेहरू के बारे में कहते थे कि इस जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं है जो हम दोनों को जोड़ सके।  हमारे नाम, हमारे कपड़े, हमारा खाना सब एक दूसरे से बिल्कुल अलग है।

भारत पाकिस्तान का बंटवारा:

जिन्ना और नेहरू अपने-अपने तरीके से योग्य और प्रतिभाशाली थे। जिन्ना के मन में ये बात बैठ गई थी कि कांग्रेस मुस्लिमों के लिए नहीं लड़ रही है। कहा जाता है इसलिए जिन्ना ने काँग्रेस छोड़ने का फैसला किया। पार्टी छोड़ने का एक कारण यह भी रहा होगा कि पार्टी में जिन्ना और नेहरू दोनों के लिए एक साथ जगह नहीं थी। ये सब जानते थे गांधी जी का झुकाव नेहरू की तरफ है और जिन्ना समझ चुके थे नेहरू ही उनके उत्तराधिकारी होंगे।

वहीं पंडित नेहरू ने इस विचार का हमेशा विरोध किया कि मुसलमान और हिंदू एक दूसरे से अलग हैं. उनके लिए हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों और ईसाइयों का आपस में मिलना-जुलना ही भारत की असली पहचान थी. उनकी नज़र में भारत में हर अलग संस्कृति को अपने-आप में आगे बढ़ाने की गज़ब क्षमता थी।

जिन्ना ने एक बार नेहरू को पत्र लिखा कि मेरे लिए आपको अपने विचार समझा पाना अब मुश्किल हो चला है। 1943 में आज़ादी से चार साल पहले ही नेहरू का जिन्ना से इस क़दर मोहभंग हो चुका था कि वो उन्हें उनका पाकिस्तान देने के लिए तैयार हो गए थे।

1944 में जिन्ना ने मुस्लिम लीग के सम्मेलन में तीन घंटा लंबा भाषण दिया तो नेहरू ने अपनी जेल डायरी में लिखा, “जिन्ना ने कितना मुखर, अशिष्ट, भड़कीला और अहंकारी भाषण दिया! भारत का और यहाँ के मुसलमानों का ये कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि उन पर इस शख़्स का इतना असर है. मेरी नज़र में उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को हिंदू-मुसलमानों के घटिया सांप्रदायिक झगड़े में बदल दिया है.”

आखिरी समय तक भी नेहरू ने कोशिश की कि शायद जिन्ना अपना मन बदल दें। इसी भावना के तहत नेहरू ने जिन्ना को एक लेटर लिखकर उनसे 15 अगस्त, 1946 को मुंबई उस वक्त का बंबई में मिलने की इच्छा जाहिर की. भारत में ब्रिटेन के वायसराय लॉर्ड वैवेल ने नेहरू को चेतावनी दे दी थी कि वो जिन्ना से किसी सकारात्मक जवाब की उम्मीद न करें। जिन्ना ने नेहरू को जवाब दिया, “अगर आप ये उम्मीद पाले हुए हैं कि मैं कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में काम करूँगा तो इस ख़्याल को अपने दिमाग़ से निकाल दीजिए,’ और बात नहीं बनी।

दोनों की एक-दूसरे को लेकर सोच और नज़रिए ने आखिरकार एक दिन भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की नींव रख दी और देश दो हिस्सों में बंट गया।

Share this article :
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WRITTEN BY
Factified
FOLLOW ON
FOLLOW & SUBSCRIBE