कैसे एक गरीब किसान का बेटा भारत के लिए ओलपिंक में उसका पहला गोल्ड लाया | Neeraj Chopra

दोस्तों टाइटल और थैम्बनैल देखकर अगर आपको ऐसा लग रहा है कि ये post सिर्फ भारतीय खेल प्रेमियों या फिर जैवनलन थ्रोअर Neeraj Chopra के फैंस के लिए है तो ऐसा बिल्कुल नहीं है बल्कि ये वीडियो उन आम मेहनत कश लोगों के लिए Inspiration है जो दुनियाभर में अपना नाम कमाना चाहते हैं….ये post सबूत है कि ग्रेटनेश के लिए कोई शॉर्टकट नहीं होता बल्कि परदे के पीछे कैमरों से दूर बहुत सारी मेहनत होती है …दोस्तों आज की इस post में जानिए कैसे एक गरीब किसान का बेटा भारत के लिए ओलपिंक में उसका पहला गोल्ड लाया …..

ओलपिंक के 200 साल के इतिहास में भारत ने कई मेडल जीते पर एथलीक्ट्स में भारत को हर बार खाली हाथ ही घर लौटना पड़ा…..फ्लाईंग मशीन मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा जैसे खिलाड़ियों ने भारत को ओलपिंक में मेडल जीताने के लिए जी जान लगा दी लेकिन कामयाब ना हो सकें….पूरी दूनिया के साथ साथ हम भी ये मान चुके थे एथलिटेक्स् गेम्स में भारत का मेडल अभी बहुत दूर है…लेकिन टोक्यो ओलपिंक के आखिरी दिन एक फिल्म के धमाकेदार क्लाइमैक्स की तरह 23 साल के नीरज चोपड़ा ने अपने भाले से भारत को गोल्ड से रंग दिया…..और भारत के एथलीक्ट्स में 121 साल के सूखे को गोल्ड के साथ खत्म कर दिया ……पर टोक्यो ओलपिंक में ये जीत की कहानी बस एक रात की नहीं है बल्कि कई सालों की मेहनत है…

गोल्डन बॉय  नीरज चोपड़ा का जन्म 24 दिसंबर 1997 को हरियाणा के पानीपत शहर के छोटे से गाँव खांद्रा में हुआ था…नीरज के पिता पेशे से किसान है और खेती करके ही परिवार का पेट भरा करते थे.. …परिवार में नीरज के माता पिता के अलावा दो बहने भी हैं. 

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संयुक्त परिवार में पले बड़े नीरज को बचपन से ही परिवार से खूब प्यार दुलार मिला और आप तो जानते ही हैं कि हम भारतीयों का प्यार खाने से ही जाहिर होता है..देशी घी में बने प्यार के खाने से नीरज का वजन भी काफी बढ़ गया था….ऐसे में नीरज के पिता और चाचा ने उन्हें दौड़ लगवाने के लिए पानीपत के शिवाजी नगर स्टेडियम ले जाया करते थे…..नीरज का मन दौड़ में तो नहीं लगा..लेकिन बच्चों को स्टेडियम में भाला फेंकता देख जरुर जैवलिन थ्रो खेलने को करने लगा ….एक दिन खेल खेल में नीरज के दोस्त जयवीर ने नीरज से भाला फेंकने को कहा ….नीरज ने भाला इतनी दूर फेंका कि वहां मौजूद किसी भी व्यक्ति को यकीन नहीं हुआ कि कोई बच्चा बिना प्रैक्टिस के भी इतना अच्छा भाला फेंक सकता है…नीरज के दोस्त ने उन्हें जैवलिन थ्रो में आने की सलाह दी…लेकिन उस समय एक अच्छे भाले की कीमत कम से कम एक लाख रुपये होती थी जिसे खरीद पाना नीरज के परिवार के लिए मुश्किल था…पर फिर भी नीरज के पिता और चाचा ने इधर- उधर से पैसे जोड़जाकर नीरज के लिए 6-7 हजार एक भाला खरीदा…ताकि वो प्रैक्टिकस तो कर पाए….नीरज का जेलविन थ्रो से ऐसा लगवा हो गया था कि वो दिन के 8-8 घंटे सिर्फ भाला फेंकने की प्रैक्टिस करता रहता था….

नीरज  ने अपनी स्कूलिंग पानीपत से की है और कॉलेज चंड़ीगढ़ के दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज से किया है…स्कूल और कॉलेज के दौरान भी नीरज ने अपना भाला फेंकने का अभ्यास जारी रखा…… 

नीरज ने 2016 में पोलैंड में हुए आईएएएफ वर्ल्ड यू-20 चैम्पियनशिप में 86.48 मीटर दूर भाला फेंककर गोल्ड जीता…जिससे खुश होकर राजपूतना राइफल ने उन्हें अपनी रेजिमेंट में सूबेदार की पोस्ट दी…इसके बाद 2018 एशियन गेम्स में नीरज ने 88.06 मीटर का थ्रो कर गोल्ड मेडल जीता था। नीरज पहले भारतीय थे जिन्होंने एशियन गेम्स में जेवलिन में गोल्ड जीता था… लेकिन इसी दौरान नीरज कंधे की चोट का शिकार हो गए। सर्जरी के बाद 6 महीने तक नीरज फील्ड से दूर रहे लेकिन इस साल नीरज ने फिर वापसी की और पटियाला में आयोजित इंडियन ग्रांड प्रिक्स में अपना ही रिकार्ड तोड़ते हुए 88.07 मीटर का थ्रो कर नया नेशनल रिकार्ड बनाया। और इसके बाद की कहानी तो आप जानते ही हैं ओलपिंक टूर्नामेंट के दौरान शुरु से नीरज नंबर वन की पॉजीशन पर थे और अंत तक उसी पॉजीशन पर बने रहे ….उनके 87.58 मीटर थ्रो को कोई खिलाड़ी छू तक नहीं पाया …..

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नीरज की एक जीत ने भारत की 140 करोड़ की जनता को जैवलिन थ्रो का मतलब बता दिया है….उस गेम को कई लोगों की लाइफ का न्यू मोटिव बना दिया है जिसके बारे में कल तक सिर्फ गिने चुने लोग जानते थे…..नीरज की सफलता आज उस मुकाम तक पहुंच चुकी है जहां पहुंचना हर खिलाड़ी का ख्वाब होता है किसी ने सही कहा है जब आपका सिंगनेचर ऑटोग्राफ में बदल जाए तो समझ जाएगा आप सफलता के मुकाम को छू चुके हैं….

जीत के बाद नीरज चोपड़ा को हर तरफ से ईनाम पर ईनाम मिल रहे हैं हरियाणा सरकार ने नीरज चोपड़ा को 6 करोड़ देने का ऐलान किया है तो पंजाब सरकार भारतीय ओलपिंक संघ, बीसीसीआई ने भी उनके लिए ईनाम की घोषणा की है पर नीरज चोपड़ा की नजरें तो अभी भी सिर्फ गोल्ड मेडल पर ही है…अपने एक इंटरव्यू में नीरज ने कहा कि उन्हें यकीन नहीं हो रहा कि उन्होंने गोल्ड जीत लिया है सोते वक्त भी वो अपने ओलपिंक गोल्ड मेडल को अपने तकिए के नीचे रखकर सोते हैं 

कुछ लोग सफलता की कहानी लिखते हैं पर नीरज चोपड़ा ने तो पूरा इतिहास ही लिख डाला वो भी गोल्डन वर्ड्स से….नीरज की तरह आप भी इस मुकाम को छू सकते हैं….पर शर्त इतनी सी है कि आपको भी दोस्ती हिम्मत और मेहनत से करनी होगी….

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