400 साल तक बर्फ में दबे रहे केदारनाथ मंदिर के 6 रहस्य

महादेव का केदारनाथ (Kedarnath) मंदिर सिर्फ भोलेनाथ के दर्शन की जगह नहीं है बल्कि ये मंदिर अपने आप में कई रहस्यों से भरा पड़ा है जिन्हें आज तक कोई सुलझा नहीं पाया। आज की विडिओ में हम आपको ऐसे ही रहस्यों से मिलाने वाले है। केदारनाथ में एक नहीं दो पर्वत हैं, इनको नर और नारायण के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये जगह भगवान विष्णु के 24 अवतारों में नर और नारायण ऋषि की तपोभूमि है। ये भी माना जाता है कि अगर कोई शख्स बिना केदारनाथ की यात्रा किए ही बद्रीनाथ की यात्रा पर जाता है तो वो यात्रा अधूरी रह जाती है।

-कहते हैं अगर इस यात्रा के समय में किसी की मृत्यु हो जाती है तो इसे शुभ माना जाता है। क्योंकि चार धाम की यात्रा करने से इंसान को मुक्ति मिलती है। केदारनाथ के आगे बद्रीनाथ के दर्शन के लिए जाया जाता है। जिनके बारे में कहा जाता है कि “जो जाए बदरी, वो न आए ओदरी।” जिसका मतलब है कि जो एक बार बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे दोबारा गर्भ में नहीं जाना पड़ता है” यानि उसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता है बल्कि उसको मुक्ति मिल जाती है। वहीं केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा करके अगर कोई वहाँ का जल पीता है तो उसे दोबारा इस संसार में जन्म नहीं लेना पड़ता।

केदारनाथ का ये भव्य मंदिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है, इस पहाड़ के एक तरफ करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदार पर्वत है वहीं दूसरी तरफ मौजूद है 600 फुट ऊंचा खर्च कुंड पहाड़ और तीसरी तरफ 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड का पहाड़ है। हमारे देश में सिर्फ काशी में ही तीन नदियों का संगम नहीं होता, काशी की तरह यहाँ 3 नहीं बल्कि 5 नदियों का संगम है- यहाँ मंदाकिनी, मधुगंगा , क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी आकार एक दूसरे से मिलती हैं। कई नदियां अब विलुप्त हो चुकी हैं लेकिन अलकनंदा की सहायक नदी मंदाकिनी आज भी मौजूद है। जिसके किनारे केदानाथ मंदिर है। जिसकी खास बात है कि यहाँ सर्दियों में बेहिसाब बर्फ पड़ती है और गर्मियों में बारिश होती है।

-ये मंदिर 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। केदारनाथ के मुख्य भाग में मंडप और गर्भगृह के चारों तरफ परिक्रमा पथ भी बना हुआ है। मंदिर के सामने वाले हिस्से में बने हुए आँगन में नंदी बैल जो भगवान शिव की सवारी है उनकी एक विशाल मूर्ति है। मंदिर में प्रवेश से पहले नंदी के दर्शन करने से मनोकामना पूरी होती है।

-केदारनाथ का मुख्य मंदिर सबसे पहले पांडवों ने बनवाया था लेकिन समय के साथ ये मंदिर धीरे-धीरे लुप्त हो गया। जिसके बाद इस मंदिर का निर्माण 508 ईसा पूर्व में जन्में आदिशंकराचार्य ने करवाया था। इसी मंदिर के पीछे ही उनकी समाधि भी बनी हुई है। कहा जाता है कि इस मंदिर का गर्भगृह आज भी वहीं है जिसे पांडवों ने बनवाया था। वहीं मालवा के राजा भोज ने 10 वीं शताब्दी में इसका मैन्टेनेन्स करवाया था।

-ये तो आपने जान लिया कि इस मंदिर को पांडवों ने बनाया । लेकिन उन्हें ऐसा क्यों करना पड़ गया? इसके पीछे की वजह भी जान लीजिए,,,दरअसल महाभारत युद्ध में जीतने के बाद पांडवों को ऐसा लगा कि उन्होंने अपने भाइयों की हत्या की है और अब उन्हें इस पाप से मुक्ति पानी होगी। पाप से मुक्त होने और प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने ये उपाय सोचा। जिसके बाद पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय के पहाड़ों में पहुँच गए। लेकिन फिर भी भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन नहीं दिए और अंतरध्यान होकर केदार पर्वत में चले गए। लेकिन पांडव भी हार मानने वाले नहीं थे और वे सब केदार पहुँच गए।

-जब भगवान शिव को ये बात पता चली तो उन्होंने बैल का भेष ले लिया और वहाँ भटक रहे गाय-बैल के साथ खड़े हो गए ताकि उन्हें कोई पहचान नहीं पाए लेकिन ऐसा हुआ नहीं इसके बाद भी पांडवों ने उन्हें पहचान लिया। भगवान शिव ये देखकर पांडवों से प्रसन्न हो गए और उन्हें दर्शन देकर सभी पापों से मुक्त कर दिया।

-कहा ये भी जाता है जब भगवान शिव बैल के रूप में अंतरध्यान हुए तो उनके धड़ के ऊपर का हिस्सा नेपाल के काठमांडू में जाकर प्रकट हुआ जहां पशुपतिनाथ का मंदिर बना हुआ है। साथ ही उनकी भुजायें तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, उनकी जटायें कलपेश्वर में प्रकट हुई।

-केदारनाथ मंदिर के द्वार दीपावली के दूसरे दिन बंद कर दिए जाते हैं। 6 महीने तक मंदिर के अंदर दीपक जलता रहता है। वहीं मंदिर के पुरोहित मंदिर पट बंद कर के भगवान के विग्रह और दंडी को 6 महीने के लिए पहाड़ के नीचे उखीमठ में ले जाते हैं। 6 महीने बाद मंदिर के कपाट खुलते हैं तब केदारनाथ यात्रा शुरू होती है। इन 6 महीनों तक मंदिर के अंदर और आसपास किसी के भी आने जाने पर पाबंदी होती है। लेकिन सबसे बड़ा रहस्य है 6 महीने तक दीपक का जलते रहना साथ ही साथ मंदिर के अंदर वैसी ही सफाई मिलती है जैसे छोड़कर गए थे।

– 16 जून 2013 की तबाही को कौन भूल सकता है। प्रकृति के इस जल प्रलय में से बड़ी-बड़ी इमारतें , रास्ते, पहाड़, पेड़ सब ताश के पत्तों की तरह पानी में बह गए। लेकिन केदारनाथ मंदिर का एक पत्थर तक नहीं हिला। सबसे आश्चर्य की बात ये थी कि जब मंदिर के पीछे की पहाड़ी से तेज पानी के बहाव के साथ एक बेहद बड़ी चट्टान भी लुढ़कती हुई आई लेकिन मंदिर के पास आते ही वह पीछे ही रुक गई। जिसके बाद पीछे से आने वाला पानी दो रास्तों में बंट गया और मंदिर और भी ज्यादा सेफ हो गया। लेकिन इस प्रलय में हजारों लोगों की जान चली गई और न जाने कितने लोग लापता हो गए।

-इस आपदा के बाद केदारनाथ मंदिर जाने का रास्ता 3 किमी बढ़ गया है। इससे पहले भक्तों को गौरीकुंड तक जाने में 14 किमी का रास्ता पैदल ते करना पड़ता था लेकिन अब रास्ते खराब हो जाने की वजह से लोगों को 17 किमी तक चलकर जाना पड़ता है। यहाँ जाने के लिए घोड़े और खच्चर पर बैठकर भी जा सकते है।

क्या आपको केदारनाथ धाम के बारे में ये बातें पता थी हमें कमेन्ट करके जरूर बताए।

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