क्रीमी लेयर

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘क्रीमी लेयर’ तय करने का एकमात्र आधार आय नहीं हो सकती

आर्थिक मानदंड के अलावा, टॉप कोर्ट ने कहा, पिछड़े वर्गों के बीच “क्रीमी लेयर” को परिभाषित करने से पहले सामाजिक, शैक्षिक और दूसरे फैक्टर्स को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राज्य पिछड़े वर्ग के अन्दर “क्रीमी लेयर” निर्धारित करने के लिए वार्षिक आय को एकमात्र क्राइटेरिया नहीं बना सकते हैं ।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और अनिरुद्ध बोस ने ये फैसला सुनाया क्योंकि हरियाणा सरकार की 2016 की एक अधिसूचना को खारिज कर दिया गया था जिसमें पिछड़े वर्गों में से उन लोगों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया, जिनकी वार्षिक आय ₹6 या उससे ज्यादा लाख है।
सामाजिक उन्नति, सरकारी सेवाओं में उच्च रोजगार ने यह तय करने में समान भूमिका निभाई कि क्या ऐसा व्यक्ति क्रीमी लेयर से संबंधित है और उसे कोटा लाभ से वंचित किया जा सकता है या नहीं।

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अदालत ने हरियाणा सरकार को आर्थिक क्राइटेरिया के अलावा सामाजिक पिछड़ेपन और दूसरे फैक्टर्स पर विचार करके तीन महीने के अन्दर अन्दर ओबीसी के बीच “क्रीमी लेयर” निर्धारित करने के लिए एक नई नोटिफिकशन के साथ आने का आदेश दिया। अदालत ने स्पष्ट किया था कि ‘क्रीमी लेयर’ में “पिछड़े वर्गों के व्यक्ति शामिल होंगे, जिन्होंने आईएएस, आईपीएस और अखिल भारतीय सेवाओं जैसी उच्च सेवाओं में पदों पर कब्जा कर लिया था, जो सामाजिक उन्नति और आर्थिक स्थिति के उच्च स्तर पर पहुंच गए थे, और, हकदार नहीं थे।
जबकि हरियाणा पिछड़ा वर्ग (शैक्षणिक संस्थानों में सेवाओं और प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2016 में “क्रीमी लेयर” को परिभाषित करने में सामाजिक, आर्थिक और कुछ दूसरे फैक्टर्स पर विचार करने के लिए प्रदान किया गया था, अदालत ने कहा कि नोटिफिकेशन में ₹6 लाख की सालाना आय का उल्लेख है।

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