आखिर क्यों असंभव है अफगानिस्तान को जीतना?

दोस्तों भारत के पड़ोसी देशों में से एक अफगानिस्तान वर्ल्ड मैप पर एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा नजर आता है …लेकिन इस छोटे से जमीन के टुकड़े को पाने के लिए अमेरिका, सोवियत संघ और ब्रिटेन कई दशकों से लड़ रहे हैं…पर फिर भी आज तक कोई भी देश अफगानिस्तान को जीत नहीं पाया ….. और इसलिए इस देश को Graveyard of Empires कहते हैं…पर क्या अफगानिस्तान को जीतनना इतना मुश्किल है….फैक्टिफाइड के इस खास एपिसोड में मैं आपको बताऊंगा क्यों अमेरिका और सोवियत संघ की भी नहीं चलती अफगानिस्तान में………

भारत से 1,850 किलोमीटर दूर अफगानिस्तान जमीन का वो टुकड़ा बन चुका है जिसे पाने की जिद्द कई देशों को बर्बाद कर चुकी है….अफगानिस्तान पर कई देशों ने राज करने की कोशिश की पर हर बार हार का सामना करना पड़ा कुछ देशों को शुरुआत में जीत मिल भी गई लेकिन वो यहां ज्यादा वक्त तक टिक नहीं नहीं पाए…

कई जनजातियां एक साथ रहती हैं यहां 

अफगान की टोटल पॉपुलेशन भारत के केरल से भी कम है किसी जमाने में यहां की आधे से ज्यादा जनता पश्तून हुआ करती थी…लेकिन आज यहां की वन थर्ड पॉपुलेशन ही पश्तून है…पश्तून के अलावा मुस्लिम हिंदु, सिख, क्रिश्यचन सहित 14 से ज्यादा रिलिजन के लोगों यहां रहते हैं….अफगानिस्तान में अलग अलग तरह की छोटी छोटी जनजातियां होने की वजह से यहां राज करना किसी के लिए भी मुश्किल है… अलग-अलग आइडॉलोजी वाली ट्राइब्स होने के बावजूद भी अफगानिस्तान में सिर्फ कट्टपंथियों का वास है फिर चाहे वो इस्लामिक हो या फिर पश्तून कम्युनिस्ट….अफगानी लोगों के सबसे गहरे संबंध पाकिस्तान से नजर आते हैं ….क्योंकि अफगानी पश्तून रिफ्यूजी बनकर पाकिस्तानी में ही जाकर बसे थे…

1893 में ब्रिटिश ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच इंटरनेशनल बॉर्डर बनाया था  जिसे Durand Line कहा जाता है….2,670 किलोमीटर लंबे  इस बॉर्डर के ज्यादातर हिस्सों में पश्तून अफगानी ट्राइब्स का कब्जा है…..इस बॉर्डर के जरिए अफगानिस्तान में इलीगल मनी, ड्र्गस, ह्यूमन ट्रैफकिंग और आतंकियों की सप्लाई बहुत आसान है…..पाकिस्तान ने बैरिंग लगाकर इस बॉर्डर को सुरक्षित करने की कोशिश तो की है पर इसका कुछ खास असर नजर नहीं आता । 

 6 देशों से मिलती है अफगानिस्तान की सीमा

अगर आप अफगानिस्तान के नक्शे को ध्यान से देखंगे तो आपको समझ आएगा कि अफगानिस्तान एशिया के 6 देशों का हॉटस्पॉट है….- ईरान , Turkmenistan,, पाकिस्तान, चीन, Tajikistan और Uzbekistan….छह से ज्यादा देशों के लिए जमीनी रास्ता होने की वजह से इस पर कब्जा करना और इससे जीतना काफी मुश्किल है…क्योंकि जब भी कोई देश अफगानिस्तान पर कब्जा करने की कोशिश करता है तो इन देशों के कट्टरपंथियों का सपोर्ट अफगानिस्तान की ट्राइब्स को मिल जाता है….यही नहीं तालिबान और मुजाहिद्दीन जैसे ग्रुप अफगानिस्तान के बीच में राज करने की बजाए अफगानिस्तान की इन बॉर्डर्स पर ही डेरा डालते हैं जिस वजह से कई बार ना केवल अफगानिस्तान का इन देशों से लिंक टूट जाता है बल्कि सारी सप्लाईज भी बंद हो जाती हैं

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हिंदकुश के पहाड़ों में रहते हैं अफगानी फाइटर्स 

लेकिन अफगानिस्तान को ना हरा पाने की सबसे बड़ी वजह है इस देश की Geographical Condition… ये देश इतने मुश्किल रास्‍तों के बीच बसा हुआ है जहां पर हिंदुकुश की ऊंची और बर्फीली चोटियां तो हैं ही साथ ही साथ पूर्व में पामीर की पहाड़‍ियां हैं. यहां पर हिंदुकुश, पामिर, तियांशान, कुनलून और हिमालय एक साथ मिलते हैं और उत्‍तर पूर्व में इन पहाड़‍ियों के ग्रुप को बदख्‍शान के नाम से जानते हैं. …ये पहाड़ इतने खतरनाक है कि इन्हें पार कर पाना आज भी सेनाओँ के लिए मुश्किल है…..

इन पहाड़ों में अफगानी फाइटर्स के भी ठिकाने हैं जो सेनाओँ को इन पहाड़ों को पार करने नही देते हैं ….इन पहाडों के बीच से सेंट्रल अफगानिस्तान के लिए रास्ता जाता है जिसे KHYBER PASS कहते हैं ये अफगनासित्न को हिंदुकुश में पाकिस्तान से जोडता है …अमेरिका की मोस्ट ऑफ द सप्लाई इसी रास्ते से आती है और तालिबान के हथियार भी इसी रास्ते से अफगानिस्तान में आते हैं…साल 2009 में तालिबान ने इस रास्ते को ब्लॉक कर दिया था जिसकी वजह से अफगानिस्तान को ईरान, Turkmenistan, के रास्ते से अपनी आर्मी के लिए सप्लाई अफगानिस्तान में पहुंचानी पड़ी थी.

अफगानिस्तान में कहीं पहाड़ हैं तो कहीं पठार और कहीं रेगिस्तान है…ऐसे में यहां per mile construction का खर्च कम से कम 5 मिलियन डॉलर है…अफगानिस्तान दुनिया के उन गरीब देशों में से हैं जहां की जनता की सालाना औसतन आय 500 रुपये हैं…..ऐसे  में अगर कोई देश अफगानिस्तान पर कब्जा कर भी लेता है तब भी वो ज्यादा वक्त तक इसे संभाल नही पाएगा….. 

अब तक जिन देशों ने अफगानिस्तान को कब्जाने की कोशिश की उसमें ब्रिटेन, सोवियत संघ और अमेरिका शामिल है…. 

ब्रिटेन ने तीन बार किया अफगानिस्तान पर हमला 

भारत पर कब्जा करने के बाद ब्रिटेन ने अफगानिस्तान को भी हथियाने की कोशिश की थी….. अफगानिस्‍तान पर साल 1839 और 1919 में ब्रिटेन ने तीन युद्ध लड़े थे जिसे एँग्लो अफगान वॉर कहा जाता है… 1919 में तीसरी -एंग्‍लो अफगान वॉर में सेंट्रल एशिया के देशों ने जीत हासिल की थी…लेकिन इसके बाद ब्रिटेन ने अफगान को फ्री कंट्री घोषित कर दिया और यहां से बोरिया बिस्तर उठाकर वापस लौट गई….

9 साल चली सोवियत संघ और Islamist mujahideen की वॉर  

सेकेंड वर्ल्ड वॉर के खत्म होने के बाद अमेरिका और रुस के बीच कोल्ड वॉर चल रही थी और दोनों देश खुद को एक दूसरे से बेहतर साबित करने के लिए दूसरे देशों में वर्चस्व जताने में लगाने लगे थे…  और इसी बीच सोवियत संघ की नजर अफगानिस्तान पर पड़ी… रुस अफगान को एक मौके की तरह देख रहा था…अफगानिस्तान को हथियाने की सबसे बड़ी वजह ये थी यहां कोई परमेंट रुलर नहीं था ….Communist और Islamist के आतंरिक मतभेदों की वजह से जनता प्रताड़ित थी…1979 में रुस ने अपनी सेना की एक टुकड़ी अफगानिस्तान भेजी ….ताकि Islamist अफगानिस्तान पर कब्जा ना कर पाए… वहीं दूसरी तरफ रुस के इस स्टेप से अमेरिका को अपनी पावर कम होती नजर आ रही थी….ऐसे में अमेरिका ने Islamist mujahideen को सपोर्ट करने का फैसला किया….  

कौन थे Islamist mujahideen

Islamist mujahideen के पास पहले ही सऊदी अरब और पाकिस्तान जैसे देशों का साथ था और अब अमेरिका के सपोर्ट से उसके लिए रुस से लड़ना बहुत आसान हो गया था… Islamist mujahideen हिंदु कुश की पहाड़ियों में रहने वाले अफगानी थे जिन्हें गोरिल्ला फाइटर कहा जाता था…वैसे तो इनके पास कुछ नहीं था जिसके दम पर ये लड़ पाते लेकिन अमेरिका के 3 बिलियन डॉलर की फडिंग के दम पर इनके पास पैसा और हथियार दोनों आ गए…. ….  

Islamist mujahideen और सोवियत संघ के बीच करीब 9 साल तक जंग चली …लेकिन आखिर में हार मानकर सोवियत ने 1989 में अपनी आर्मी वापस बुला ली और अफगानिस्तान को छोड़ दिया । 

सोवियत संघ के जाने के बाद अमेरिका अफगानिस्तान पर अपना दबदबा बनाने लगा था और Islamist mujahideen को हथियार सप्लाई करता रहा, लेकिन इसी बीच अफगानिस्तान छोड़कर पाकिस्तान गए पाश्तून लोग वापस अफगानिस्तान लौटने लगे थे…

कैसे हुआ तालिबान का जन्म 

इन अफगान रिफ्यूजी ने अपना अलग ग्रुप बनाया जिन्हें तालिबान कहा जाता है… पश्तून लेंग्वेज में तालिबान का मतबल स्टूडेंट होता है.. Mullah omar नाम के आदमी ने 50 स्टूडेंट्स के साथ मिलकर इस ग्रुप को बनाया था….बाद में और भी अफगान रफ्यूजी इस ग्रुप का हिस्सा बनते चले गए…य़े ग्रुप mujahideen से भी ज्यादा कट्टरपंथी था…और इस ग्रुप के आने से अफगानिस्तान की हालत पहले से भी ज्यादा खराब हो गई थी….

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अमेरिका ने अफगानिस्तान भेजी अपनी सेना

2001 में अमेरिका में 9/11 हमला हुआ…जिसके आरोपी ओसामा बिन लादेन को तालिबान ने पनाह दी…9/11 का बदला लेने और अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए इसी साल अमेरिका ने अपनी आर्मी अफगानिस्तान भेजी….यूएस आर्मी अफगानिस्तान की नई गर्वमेनट को सपोर्ट करती है और तालिबान बैकफुट पर चला जाता है ….लेकिन 20 साल तक अफगानिस्तान में अपनी आर्मी तैनात करने के बाद भी अमेरिका को वो नहीं मिल पाया जो वो चाहता था…और अब फाइनली अमेरिका ने भी अफगानिस्तान से अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया है…. इस साल 9/11 की 20वी सालगिरह तक अमेरिका की पूरी आर्मी वापस लौट आएगी..

अफगानिस्तान से क्यों वापस लौटे सोवियत संघ , ब्रिटेन और अमेरिका 

ऐसा नहीं था कि ब्रिटेन या सोवियत संघ अफगानिस्तान पर कब्जा नहीं कर सकता था या फिर अमेरिका अफगानिस्तान से हार गया…..लेकिन इन देशों ने अपनी अपनी आर्मी वापस पीछे कर ली क्योंकि अफगानिस्तान जैसा देश जिसकी Geographical Conditions  बहुत Harsh है और जो शुरु से ही कट्टरपंथियों का बेस रहा है वहां आर्मी तैनात करने से इन देशों की बहुत बड़ी मैन पावर और अरबों रुपये डूब रहे थे जिसे ये किसी और सेक्टर में इस्तेमाल कर सकते हैं…  अफगानिस्तान पर तैनात आर्मी पर अमेरिका ने आज तक 2 ट्रियिलयन डॉलर से ज्यादा का खर्च किया है ….पैसा ही नहीं अफनागिस्तान को कब्जाने की वजह से इन देशों ने अपने हजारों सैनिक भी खोए

2001-2021 तक अमेरिका के Operation Enduring Freedom के तहत अफगानिस्तान में 2,348 अमेरिकी सैनिकों की जान गई.

2001 से 2021 तक  इसी ऑपरेशन में नोटो के 1147 सैनिक मारे गए.

1979 से 1989 तक सोवियत अफगान वॉर में 14,453 सैनिकों की मौत हुई थी और 53,753 सैनिक घायल हुए थे

1919 में तीसरे अफगान-एंग्‍लो वॉर में ब्रिटेन के 236 सैनिक मारे गए.

1879-1880 में दूसरे एंग्‍लो अफगान वॉर में 9850 सैनिकों की जान गई थी.

1839 से 1842 तक पहले एंग्‍लो अफगान वॉर में 4700 सैनिक मारे गए थे.

दूसरे देशों के लिए अफगानिस्तान में सत्ता हासिल करना मुश्किल है क्योंकि उन्हें अफगानिस्तान के बारे में सोचने से पहले अपने देश के बारे में भी सोचना है ऐसे में अफगानिस्तान को अपनी आजादी की लड़ाई खुद लड़नी होगी और खुद जीतनी होगी 

खैर अब तो आप भी जानते हैं क्योंकि कोई देश अफगानिस्तान को हरा क्यों नहीं पाया ….अफगानिस्तान की इस undefeated Story आपका क्या कहना है जल्दी से कमेंट करके बताएं…अगर ये पोस्ट पसंद आया तो लाइक करना मत भूलना…. अगले हफ्ते मैं फिर लेकर आऊंगा आपके लिए ऐसी ही एक और Informative और Interesting स्टोरी……तब तक खुश रहिए अपने चाहने वालों का ध्यान रखिए और पोस्ट अंत तक देखने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया 

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