पाकिस्तान का आतंकवाद से आखिर क्या रिश्ता है?

पाकिस्तान( Pakistan) की वो खौफ़नाक हकीकत जिससे बच के निकलना पाकिस्तान के लिए भी नामुमकिन है। पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क,, जो किसी भूलभुलैया से कम नहीं है, जिसका सही रास्ता खुद पाकिस्तान भी आज तक नहीं खोज पाया, ये मुल्क बाहरी देशों के लिए जितना अलग है, उतना ही ये खुद के लिए भी है, देखा जाए तो ये एक मकान है जिसमें कई सारे कमरे हैं, जहां एक दूसरे को किसी की सुध नहीं है, अपनी आतंकी गतिविधियों के मशहूर पाकिस्तान जिसे दुनिया में कोई पसंद नहीं करना चाहता, वहाँ की लाइफस्टाइल आज भी पिछड़े भारत से भी कई ज़्यादा गई गुजरी है, एक आयरिश ऑथर Declan Walsh ने करीब 10 साल पाकिस्तान में बिताए, लेकिन मई 2013 में अचानक कुछ ऐसा हुआ की, डेकलन को मुल्क छोड़ने का फरमान थमा दिया गया, ये डेकलन के लिए एक बहुत बड़ी सज़ा थी, दरअसल, डेकलन ने बलूचिस्तान पर एक रिपोर्ट छापी थी, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान की सच्चाई को परोसा था, बलूचिस्तान पाकिस्तान की सबसे दुखती नस है, क्योंकि यही वो इलाका है, जहां से पाकिस्तान के वजूद को सबसे बड़ी चुनौती मिलती है।

पाकिस्तान और आतंकवाद:

इस देश को दक्षिण एशिया में बसाया गया है, जहां पंजाबी, सिन्धी, बलूच, पठान , शिया , सुन्नी , मुजाहिर , हाजरा और दूसरे धर्मों के मुसलमान रहते हैं, साल 1959 में जब अहमदिया मुसलमानों के खिलाफ दंगे हुए, तो, जस्टिस मुनिर की अगुवाई में एक commission बनाया गया, जिसनें इस्लामी पहचान पर कई सवाल खड़े हुए, अब सवाल ये था की, अगर अहमदिया मुसलमान नहीं हैं तो मुसलमान कौन है?

लेकिन शौक तो तब लगा, जब ये पता चला की, इन लोगों की पहचान तो कई टुकड़ों में बटी हुई है, और यहाँ लोग अपनी पहचान का हक किसी को देने के लिए तैयार नहीं था, इसी बात पर जस्टिस मुनिर ने कहा था, की, इस्लाम की बुनियाद पर सभी लोगों के लिए एक राष्ट्र को कैसे बनाया जाए, और जस्टिस मुनिर की ये चिंता वाकई चिंता करने लायक थी, क्यूंकी उनका ये सवाल इतना ज़्यादा बुनियादी है, की, ये पाकिस्तान को बना भी सकता है, और बिगाड़ भी सकता है।

और बड़ी हैरानी की बात है की, आज तक इस सवाल का जवाब नहीं मिला, जिसका नतीजा एक ऐसा देश तैयार हुआ, जो कैसे और क्यों चलता है, किसी को कोई अंदाजा नहीं है। जब डेकलन पाकिस्तान में अपनी सजा काट रहे थे, उस वक्त वहाँ रहते हुए उन्हें इस मुल्क से प्यार हो गया, वो भी बेइंतेहा लेकिन, डेकलन ने इस मुल्क को एक अंधे कुएं की तरह बताया है, जिसकी तकदीर भयानक साजिशों, हत्याकांडों और सजाओं से भरी पड़ी है, Walsh, ही वो शख्स हैं, जिन्होंने हमें पाकिस्तान की डरावनी तस्वीर दिखाई है, इसके इतिहास की पहचान ऐसी है, की, जो भंवर बनके घूम रही है, अब सोचने वाली बात ये है की, की क्या पाकिस्तान ऐसा ही रहने वाला है ? इसे लेकर सभी पाकिस्तानी अवाम असमंजस में है, लेकिन ऐसा नहीं है की पाकिस्तान की सारी जनता ऐसा ही सोचती है, इनमें से कुछ हैं, जो, भारत, अमेरिका या इजरायल के दखल की साजिशी किस्सों में सुकून खोजने की कोशिश करते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो, ये देश लोगों की आहों और पछतावों का देश है, जहां कई लोग इसके वजूद को लेकर अफसोस तक करते हैं’। और जैसा की हम सब जानते हैं की पाकिस्तान अगर टिका हुआ है तो सिर्फ अंधी आस्था पर।

पाकिस्तान में पहले प्रधानमंत्री Liaqat Ali Khan की हत्या कर दी गई, एक पूर्व प्रधानमंत्री को मार डाला गया, और एक और पूर्व प्रधानमंत्री को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया, एक मिलिट्री रूलर का रहस्यमय तरीके से ऐक्सिडेंट हो गया, तालिबान के गुरु कहे जाने वाले मुल्ला अब्दुल गनी बरादर की भी जान ले ली गई, पूर्व प्रधानमंत्रियों को जेल काटनी पड़ी, देश संभाल रहे कई लोगों को विदेश भागना पड़ा…। पाकिस्तान में कोई भी महफूज नहीं रहा। और इन सब के पीछे रहस्यमई कहानियाँ बनती गईं।
जिस आर्मी को पाकिस्तान का माई-बाप माना जाता है, वो आज खुद में ही नहीं है,,,, और जिस खुफिया एजेंसी का वहां राज चलता है, वो अपने आप में ही सेफ नहीं है,,, जिन कट्टरपंथियों, आतंकवादियों को हम पाकिस्तान का टट्टू कहते हैं, क्या वाकई उनका कोई मालिक है? ऐसा लगता है जैसे पाकिस्तान में अनगिनत ताकतें हैं और सब एक-दूसरे का चक्कर काट रही हैं।

यहाँ वसूली और रसूख वालों की असली दुनिया भी इसी पाकिस्तान में है,,, ये शहर हैं करांची और इस्लामाबाद, यहीं ISI का सुपर एजेंट सुल्तान अमीर तरार उर्फ कर्नल इमाम भी है, जिसनें अफगानिस्तान में अल कायदा और तालिबान को खड़ा किया, लेकिन आखिरकार पाकिस्तानी तालिबान ने तड़पा तड़पा उसे मार डाला, यहाँ पख्तूनख्वा के जिद्दी और मनमौजी पठानों की भी तगड़ी फौज है, जो सदियों पुराने कबयाली माहौल में आतंकवादियों के हमराज़ बने हुए हैं।
खैर ये तो होना ही था, क्यूंकी ये पाकिस्तान के इतिहास की सबसे बड़ी भूल जो थी, तो वो अपनी कीमत वसूले बिना कैसे रह जाती, यही वजह है की इस्लामिक होने के बाद भी पाकिस्तान अपनी खुद की पहचान आज तक नहीं बना पाया, अब जब पाक को इस बात का एहसास हुआ तो, उसनें साल 1965 में लोगों में राष्ट्रवाद जगाने की कोशिश की, और उसकी ये हरकत भी एक और बड़ी भूल बनकर उभरी, असल में, भारत से जंग और उसके भयंकर अंजाम, ने पाकिस्तान की चाल हमेशा के लिए बिगाड़ के रख दी,
इस जंग से पहले यानि 1960 में पाकिस्तान की जीडीपी सिंगापुर के बराबर थी, उस वक्त पाकिस्तान भारत के मुकाबले ईकनामिकल कन्डिशन में ठीक ठाक था, बस ठीक ठाक, लेकिन इसके साथ ही अमेरिकापरस्त भी…. और जैसा की हम सब जानते हैं की, जब शुरुआत ही गलत बुनियाद पर हो, तो अनहोनी को कैसे टाला जा सकता था? क्यूंकी पाकिस्तान के दिमाग में बस कश्मीर के बदले की आग जल रही थी, और नतीजा ये हुआ की, उसने भारत से भिड़कर east पाकिस्तान को खो ही दिया, वहाँ जिया उल हक के तौर पर कट्टरपंथ परवान चढ़ रहा था, और बस इसी गलती नें उसे अफगानिस्तान के जाल में फंसा दिया, इसके बाद 9/11 में हुए अमेरिका के वर्ल्ड ट्रैड सेंटर में हमले के पीछे जिन लोगों का हाँथ था, उनके निशाने पर खुद पाक भी आ गया था।

दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश होगा, जिसकी किस्मत इतनी खराब ज़्यादा रही हो, जिसे जब मन करा सुपर पावर का मोहरा बना दिया गया हो, जिसकी कीमत इतनी ज़्यादा हो, की आज तक वो चुका रहा है, और समय ऐसा भी आया जब पाक ने पैसा खूब छापा, ये वक्त था, साल 1979 से 1989 के बीच का, जब पाकिस्तानी आर्मी और सरकार ने मिलकर अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ मुजाहिदीन को खड़ा किया और अंधा पैसा वसूला, और वहीं दूसरी तरफ जनरल जिया ने पाकिस्तान को सही मायने में इस्लामी देश में तब्दील करने का बीड़ा छेड़ दिया था, लेकिन जैसे ही सोवियत टैंकों ने अफगानिस्तान से विदा ली, तो उसकी मानों रौनक ही उड़ गई हो…. और पाकिस्तान की इसी हरकत की वजह से अमेरिका नाराज हो गया, पैदा हुई और पाकिस्तान में जिहादी अड्डे पनपने लगे। फिर 9/11 के बाद वो वक्त आया जब पाकिस्तान को अपने ही जिहादियों के खिलाफ मोर्चा खोलना पड़ा, और पाकिस्तान के लिए यही समय सबसे ज़्यादा दर्दनाक था। क्युकी साल 2007 में इस्लामाबाद में लाल मस्जिद के इमाम भाइयों ने सरकार को अपने खिलाफ गोला-बारूद बरसाने को मजबूर कर दिया था।

पाकिस्तान आज उसी रास्ते पर लड़खड़ा रहा है, क्यूंकी अब ये देश पहले से ज़्यादा गरीब और गुस्सेल है, जिसका कोई सोल्यूशंस नहीं है, और पुराने diplomat हुसैन हक्कानी ने कुछ सुझाव दिए हैं, जिसमें कहा गया है की, जिहाद की आइडियॉलजी छोड़नी होगी, भारत से बेमतलब की बराबरी को जब तक बस न हो, तब तक के लिए इसे भूलना होगा, और पाकिस्तान को एक लड़ाकू मुल्क की बजाए व्यापारी मुल्क के तौर पर देखना होगा।

लेकिन क्या इस मुल्क की किस्मत अपना रास्ता बदलेगी, यही सबसे बड़ा सवाल है उस देश के लिए, जहां जवाब अंधेरी गुफाओं में कहीँ गुम हो जाते हैं।

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