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China की 1 चालाकी, पूरी दुनिया पर कब्जा करने का है प्लान

China की चालाकियों से हम अच्छी तरह वाकिफ है और पूरी दुनिया भी चाइना की ये चालाकियाँ बखूबी समझती है पर फिर भी चाइना धीरे धीरे दुनिया में अपने पैर पसारता जा रहा है अपनी एक खास रणनीति बनाकर वो धीरे धीरे दुनिया के छोटे छोटे देशों पर कब्जा कर रहा है, इसमें वो कई बार सामने से लड़ाई लड़ता है तो कई बार मौका मिलने पर पीछे से वार करने में भी नहीं चूकता।  

China कैसे कर रहा है चालाकी 

हाल ही की बात की जाए तो China ने अपनी साजिशों से श्रीलंका जैसे देश को अपने शिकंजे में कस लिया।  चाइना ऐसे छोटे और आर्थिक रूप से मजबूर देशों को हथियाने के लिए जिस खास पॉलिसी को अपना रहा है उसका नाम है Debt Trap Diplomacy, इस तीन शब्द की पॉलिसी को अपनाकर चाइना दुनियाभर को अपने कब्जे में लेने का प्लान रखता है।  जिसका सबसे बड़ा शिकार श्रीलंका बना है, आखिर क्या खास है इस तीन शब्द की पॉलिसी में, किस तरह से ये काम करती है ये सब भी जानेंगे पर पहले बात करते हैं इस बारे में आखिरकार चीन की पॉलिसी से श्रीलंका का हाल इतना बुरा आखिर हुआ कैसे, 

 श्रीलंका की आर्थिक स्थिति इस साल 2022 के शुरुआत से ही इतनी ज्यादा खराब हो गई थी कि देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे सहित सभी नेताओं ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था और  हार मान ली थी कि देश की आर्थिक स्थिति को संभालना अब उनके बस की बात नहीं रही है, वहीं देश के तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे तो देश छोड़ कर ही भाग गए थे।   

देश की जनता में महंगाई की वजह से हाहाकार मचा हुआ था, क्योंकि श्रीलंका सरकार के फैसलों और China की साजिश का खामियाजा आम पब्लिक को भुगतना पड़ रहा था, पब्लिक इतने गुस्से में आ गई थी की उन्होंने श्रीलंका के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के निवास पर हमला बोल दिया था, श्रीलंका के सभी नेता अपनी जान बचाने को यहाँ वहाँ भाग रहे थे, पर सोचने वाली बात ये है कि श्रीलंका इतनी बुरी हालत में गया कैसे जिसका जवाब सिर्फ एक ही जवाब सामने आता है की श्री लंका की इस बुरी हालत का जिम्मेदार चाइना था।     

दरअसल श्रीलंका एक लंबे समय से China से कर्ज लेता आ रहा था, श्रीलंका में टूरिज़म ही मुख्य आजीविका का साधन है ऐसे में श्रीलंका अपने देश के लिए और भी नए तरह के रोजगार और डेवलपमेंट करने के लिए चीन की मदद ले रहा था,  वहीं चीन भी उसको सस्ते दामों पर कर्ज और दूसरी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करवा रहा था, China से मिले पैसे से श्रीलंका अपने देश मे सड़के बना रहा था, बंदरगाह बना रहा था और खनन के काम शुरू कर चुका था, चाइना के इस इनवेस्टमेंट से श्रीलंका के आम लोगों की ज़िंदगी पर अच्छा असर पड़ा क्योंकि देश में रोजगार के नए रास्ते भी खुल गए थे, ज्यादा से ज्यादा लोगों के पास रोजगार था पर इसका नुकसान ये हुआ कि श्रीलंका धीरे धीरे चाइना की मदद पर आश्रित होता चला गया उसके कर्जे में डूबता चला गया, जहां साल 2005 मे श्रीलंका में चीन का सिर्फ 16.5 मिलियन डॉलर ही इन्वेस्ट था, वही 2015 आते आते ये निवेश 338 मिलियन डॉलर तक चला गया था।   

अब कर्ज लिया था तो लौटना भी था, जिसके लिए श्रीलंका को एक बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी, जिसका एक बड़ा उदाहरण है China का श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर धोखे से कब्जा कर लेना, हंबनटोटा पोर्ट का निर्माण साल 2008 मे श्रीलंका ने शुरू किया था जिसके लिए चीन ने लगभग 1.5 बिलियन डॉलर का कर्ज श्रीलंका को दिया था, पर इसके बाद भी ये पोर्ट बनकर पूरा नहीं हो पा रहा था क्यूंकी चाइना पोर्ट के काम को पूरा होने ही नहीं दे रहा था कभी फंड्ज रोककर तो कभी प्रोजेक्ट में नुकसान दिखाकर। जिसकी वजह से 2017 में एक समझौता हुआ जिसमे चीन की सरकारी कंपनियों ने पोर्ट को 99 साल की लीज पर 70 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ अपने कब्जे में ले लिया और तब जाकर चीन ने दोबारा पोर्ट में इन्वेस्ट किया 

पर फिर भी हालत ये हैं कि श्रीलंका को अभी भी पोर्ट के लिए किया गया कर्ज चुकाना है, वहीं दूसरी तरफ पोर्ट को कब्जे में लेने के बाद उसी पोर्ट से कमाई कर रहा है।  

और यही है China की Debt Trap Diplomacy, जिसमे चाइना पहले आर्थिक रूप से कमजोर देशों को पहले अपनी मदद ऑफर करता है, उन्हे अपनी सुविधाओं और फंड्ज की आदत लगा देता है और वक़्त आते ही उनपर पलट वार कर देता है, ताकि उस देश के पास चीन से समझौता करने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता ही न बचे।  

 अपनी ये चालाकी न जाने China कबसे चलाता आ रहा है, कोरोना महामारी भी चीन की ही देन है जिसका खामियाजा पूरी दुनिया ने तो भुगता ही पर श्रीलंका के लिए तो ये उसकी बर्बादी की वजह ही बन गया।  श्रीलंका की कमाई का एक बड़ा हिस्सा टूरिज़म है, कोरोना की वजह से टूरिज़म पूरी तरह से रुक गया था जिससे श्रीलंका की आर्थिक स्तिथि और भी ज्यादा बुरी होती चली गई और 2022 आते आते श्रीलंका की जनता गरीबी और महंगाई की मार से त्रस्त हो गई।  देश की सरकारें भी बिखर गईं, एक स्लो पॉइज़ेन की तरह चाइना ने श्रीलंका को कमजोर करता गया, आर्थिक रूप से उसे मजबूर कर किया और धीरे धीरे उसकी चीजों पर कब्जा भी शुरू कर दिया।  

 पिछले लगभग एक दशक से China ने बहुत से गरीब देशों को कर्ज देकर उन्हे अपने जाल में फँसाया है, इन देशों में पाकिस्तान, नेपाल, मंगोलिया, साउथ अफ्रीका और केन्या जैसे देश शामिल हैंचाइना के ऊपर दुनियाभर के देश ये आरोप लगाते आए हैं कि गरीब देशों को कर्ज देकर उनपर कब्जा करना ही चाइना की स्कीम है, पर इन आरोपों पर चाइना का कहना है कुछ पश्चिमी देश उसकी इमेज को खराब करने के लिए ऐसा आरोप उसपर लगाते हैं।  

 चाइना ने पिछले एक दशक में दूसरे छोटे देशों कर्ज देने की अपनी कपैसिटी को तीन गुना तक बढ़ाया है और ये आँकड़े अभी भी किसी के पास सही सही मौजूद नहीं है कि चीन किस देश को कितना कर्ज देता हैचीन कर्ज देते समय सामने वाले देश के सामने ऐसी शर्तें रखता हैं की एक समय बाद वो उनकी अहम संपत्ति को अपने कब्जे में रख सके।  

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 कुछ दिन पहले खबर ये भी आई थी कि जो श्रीलंका के साथ हुआ वो अब पाकिस्तान के साथ भी हो सकता है, पाकिस्तान भी चीन के कर्जे से दबा हुआ है साथ ही उसकी आर्थिक स्तिथि भी काफी खराब है, तब खबरें ये भी थी की जैसे श्रीलंका को अपने कर्जे से राहत पाने के लिए हंबनटोटा पोर्ट को लीज पर देना पड़ गया था वैसे ही अब पाकिस्तान को भी अपने कर्ज से राहत पाने के लिए अपने देश का अहम हिस्सा गिलगित बलतिस्तान को लीज पर देना पड़ सकता है, ये हिस्सा कश्मीर से जुड़ा हुआ है।  

China की ऐसी बातें सामने आने के बाद बहुत सी रिसर्च एजेन्सीस ने चीन की इस स्ट्रेटेजी पर रिसर्च किया पर उन्हे ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिला की चीन ने किसी भी देश की कोई बड़ी संपत्ति पर कब्जा किया है पर इसके पीछे भी एक वजह मानी जा सकती है सभी बड़े देश अपने लोन से जुड़ी जानकारियों को पेरिस क्लब में बताते हैं ये कर्ज देने वाले बड़े देशों की सदस्यता वाला एक संगठन है पर चीन इस संगठन में शामिल ही नहीं हुआ है तो उसके दिए गए कर्जों की जानकारी किसी को नहीं लगती।  

 इसके अलावा वर्ल्ड बैंक के आँकड़े भी ये बात साफ करते हैं कि China दूसरे देशों के मुकाबले में कहीं ज्यादा कर्ज देशों को देता है, China की कर्ज देने की स्कीम मे ये भी शामिल है की वो वर्ल्ड बैंक और पश्चिमी देशों की तुलना में ज्यादा ब्याज दर पर कर्ज देता और उसे चुकाने का समय भी कम देता है, दूसरे देश जहां सिर्फ 1 पर्सेंट पर कर्ज देते हैं पर चीन 4 परसेंट पर कर्ज देता है वही वो लोन चुकाने के लिए सिर्फ 10 साल समय देता है पर दूसरे देश 28 साल तक का टाइम देते हैं।  

 तो चाइना की इन शर्तों और तरीके से साफ समझ आता है कि उसका तरीका देशों को कर्ज देकर उन्हे अपने शिकंजे में कसकर उनपर कब्जा करना है, इसके अलावा अपनी सभी जानकारियों को पूरी दुनिया के साथ शेयर न करना भी उसके इसी मास्टर माइंड प्लान का एक बड़ा हिस्सा है ।  

तो दोस्तों ये थी China की चालाकी से श्रीलंका और दुनिया के दूसरे छोटे देशों पर कब्जा करने असली नियत और स्ट्रेटीजी की पूरी कहानी की कैसे श्रीलंका कमजोर वक़्त पर मदद करके उन देशों की मजबूरी का बाद में फायदा उठता है.

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