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आखिर कैसी होती है LOC  पर एक सोलजर की जिंदगी?

एसी में बैठकर टीवी पर सोलजर्स को देखना उनकी कहानियां सुनना अच्छा लगता है…गर्व महसूस होता है …पर हमारे लिए वो किस हाल में रहते हैं कैसे बॉर्डर पर खड़े होकर ड्यूटी करते हैं…ये हम इमजेन भी नहीं कर सकते….फिल्में और किताबें भी सिपाही की वीरता के किस्से तो सुनाती है पर  बॉर्डर पर बीते उनके दिनों के हाल नहीं बताती…अब एक सोलजर कश्मीर में तैनात हो या कन्याकुमारी में

….ड्यूटी किसी की आसान नहीं होती …पर इनमें भी सबसे मुश्किल होती है उन सोलजर्स की जिंदगी जो LOC पर तैनात होते हैं….दुश्मन से सिर्फ कुछ कदम दूर..या यूं कहें मौत से कुछ कदम दूर..

कब कहां से गोली चल जाए …कब कहां से हमला हो जाए…कुछ पता नहीं….और इन सब के बीच खाने का भी वक्त मिलता होगा या नहीं….सोते कहां होंगे….आखिर कैसी होती है LOC  पर एक सोलजर की जिंदगी …

अगर इस सवाल ने आपको भी परेशान किया है तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं क्योंकि FACTIFIED में आज हम आपको ले चलें एलओसी पर और बताएंगे आखिर कैसी होती है LOC  पर एक सोलजर की जिंदगी 

LOC 

जम्मू कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच बनी मिलिट्री लाइन को Loc मानें लाइन ऑफ कंट्रोल कहते हैं…इस लाइन के एक तरफ भारत है और दूसरी तरफ पाकिस्तान ..Loc एक इंटरनेशनल बाउंड्री नहीं है बल्कि एक De-facto लाइन है… De-facto लाइन वो होती है जो दो देशों के Territorial claim से नहीं बल्कि उनकी एक्चुअल और ऑन ग्राउंड एरियाज से तय होती है… 

LOC पर क्यों होते हैं इतने सीजफायर 

1947 में  सायरस रैडक्लिफ़ ने एलओसी के सडन एरिया से लेकर अरब सागर तक भारत पाक के बीच इंटरनेशन बाऊंड्री ड्रा की थी…इसलिए इन बॉडर्स पर छोटे मोटे Conflicts  के अलावा कोई बड़ा Conflict देखने को नहीं मिलता….बंटवारे में जम्मू कश्मीर किसी के हिस्से नहीं आया था….क्योंकि जम्मू कश्मीर के राजा हरि सिंह जम्मू कश्मीर को एक आजाद राज्य रखना चाहते थे…पर पाकिस्तान ने अपने कुछ Militants भेजकर कश्मीर को छिनने की कोशिशि की… 

जिसके बाद हरि सिंह ने भारत के साथ Instrument of Accession साइन कर जम्मू कश्मीर को भारत का हिस्सा बना दिया …पर ये Accession पाकिस्तान को मंजूर नहीं था….और इसी Disagreement के चलते भारत पाक के बीच फर्स्ट वॉर हुई जिसे फर्स्ट कश्मीर वॉर भी कहते हैं…

ये वॉर 22 अक्टूबर 1947 से 5 जनवरी 1949 तक चला…इस वॉर का एंड 31 दिसंबर 1948 को सीजफायर से हुआ… 1949 में भारत पाक ने कराची एग्रीमेंट साइन किया…इस एग्रीमेंट के मुताबिक दोनों आर्मी जहां पर थी उसे सीजफायर लाइन का नाम दिया गया…

1972 में इंडिया पाकिस्तान ने शिमला एंग्रीमेंट साइन किया जिसमें  इस सीजफायर लाइन को एलओसी घोषित कर दिया गया….और तय किया गया कि इसे कोई भी देश नहीं बदल सकता …पर कश्मीर को लेकर भारत-पाक का ये विवाद कभी खत्म नहीं हुआ…अमेरिका के Former President बिल क्लिंटन ने एलओसी को दुनिया का सबसे खतरनाक बॉर्डर कहा था..अगर आप आर्मी में हैं या आपके घर का कोई सदस्य आर्मी से है तो जानते ही होंगे कि इस लाइन को दुनिया का सबसे खतरनाक बॉर्डर क्यों कहते हैं…….

भारत पाक को अलग हुए 75 साल हो चुके हैं पर आज भी एलओसी पर Confilct होता रहता है और हर साल कई जवान एलओसी पर लड़ते हुए शहीद हो जाते हैं.

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बिना गोलियों के नहीं होती सुबह 

यहां कभी कोई दिन नहीं बितता जब गोलियों की आवाज सुनाई ना दें….हथियारों की तस्करी, देश में आतंकियों की घुसपैठ का मैन एंट्रस भी यही लाइन मानी जाती है…जिन्हें रोकने के लिए यहां पर बीएसएफ, पैरा कमांडो, जाट रेजिमेंट, कुमाऊं रेजिमेंट और नागा रेजिमेंट जैसी भारत की एलिट फोर्सस को तैनात किया जाता है…

एलोसी पर भारतीय जवानों के 3 दुश्मन है…पहली पाकिस्तानी आर्मी, दूसरे आतंकवादी और तीसरा यहां का मौसम 

अंडर ग्राउंड बंकर बनाकर रहते हैं जवान 

LOC पर तैनात जवान हर पल मौत के साए में दिन गुजराते हैं…जहां पलभर की नींद लेना भी नसीब की बात है….एलओसी पर तैनात इन जवानों को रहने के लिए कोई पक्का कौटेज नहीं मिलता…ये तो खुद अपने लिए जमीन के नीचे छोटे छोटे अंडरग्राउंड बंकर तैयार करते हैं….

इन लिविंग बंकर को इस तरह तैयार किया जाता है कि गोलाबारी का भी इन पर असर नहीं होता …अंदर बिजली का भी पूरा इंतजाम है…सामान रखने की एक छोटी सी अलमारी… सामने दीवार पर एक कलेंडर और दो लोगों के सोने के लिए सिलिपिंग बैगस भी मौजूद होते हैं….इन बैंकर में एक समय में सिर्फ दो ही जवान में रहते हैं…उनमें में भी जब एक जवान आराम कर रहा होता है तो दूसरा बंकर के बाहर बैठकर निगरानी करता है…लिविंग बंकर्स के अलावा कई बंकर्स छिपने के लिए भी तैयार किए जाते हैं ताकि हमले के वक्त जवान यहां से दुश्मन पर हमला कर सकें….

एलओसी पर आर्मी के अपने Surveillance कैंप भी होते हैं जहां से आर्मी कश्मीर हेडक्वाटर से कनेक्टिड रहती है…आर्मी डॉक्टर्स और नर्सस भी एलओसी पर जवानों की मदद के लिए मौजूद होते हैं…हां लेकिन एलओसी पर सिर्फ फर्स्ट एड की ही सुविधा मौजूद होती है…सीजफायर के दौरान अगर कोई जवान घायल हो जाता है तो उसका फर्स्ट एड कर उसे कश्मीर बेस भेज दिया जाता है 

ऐसे होती है एलओसी पर जवानों की सुबह 

महीना मई का हो या दिसंबर का बॉर्डर पर जवान की सुबह एक सी होती है.…..4 बजे सुबह उठने के बाद जल्दी जल्दी तैयार होकर जवानों को अपनों रेगुलर ड्रिलिंग करनी पड़ती है….फिर ये जवान तैयार होकर कैटीन में पहुंचते हैं जहां कश्मीर हेडक्वॉर्टर से आए राशन से बहुत लजीज तो नहीं लेकिन जवानों के खाने लायक खाना मिल जाता है…

इस खाने को बनाने वाले भी जवान ही होते हैं जो खासतौर पर इसी पोस्ट पर हायर किए जाते हैं…खाना खाने के बाद जवान अपनी अपनी ड्यूटी पर निकल पड़ते हैं और नाइट ड्यूटी पर तैनात जवान बंकर में आराम को लौट जाते है……निगरानी के दौरान जवान के हाथ बंदूक पर होते है और नजरें बॉर्डर पर..बॉर्डर पार से सीजफायर होते ही जवान दुश्मनों को जवाब देना शुरु कर देते हैं…

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Construction भी खुद ही करते हैं 

हर 4 से 5 घंटे में जवान अपनी शिफ्ट बदलता है और थोड़ी देर के लिए आराम करने जाता है और उसकी जगह दूसरा जवान आकर दुश्मन पर नजर रखता है…निगरानी और नजर रखने के अलावा कुछ जवान कंस्ट्रक्शन और रिपेयरिंग का काम भी करते हैं…740 किलोमीटर लंबी LOC की लाइन में 550 किलोमीटर की बैरिंग हमारे भारतीय जवानों ने ही की है….

दिन से ज्यादा खतरनाक होती है रात 

पर दिन से ज्यादा खतरनाक यहां रात होती है, जो किसी को सोने नहीं देती…सेना अपने सारे ऑपरेशनस को रात में ही अंजाम देती है जिसमें हाई टैक टैक्नॉलेजी के साथ-साथ आर्मी के ट्रेनिड कुत्ते भी अहम रोल प्ले करते हैं…बॉर्डर पार से घुसपैठ की कोशिश भी इसी समय सबसे ज्यादा होती है इसलिए जवानों की एक टुकड़ी हमेशा junior commissioned officer  के साथ नाइट पैट्रोलिंग पर रहती है…..

एक सोलजर कम से कम 4 से 5 हफ्तों तक एलओसी पर ड्यूटी करता है और फिर कश्मीर बेस पर लौट आता है…..एलओसी पर हालात खराब होने पर ये टाइम बढ़ भी सकता है… 

बर्फबारी में भी फुल एनर्जी के साथ करते हैं ड्यूटी  

मौसम का मिजाज यहां कभी भी बिगड़ जाता है खासतौर पर सर्दियों में एलओसी पर ड्यूटी करना बहुत मुश्किल  है…-20 डिग्री temperature में जवानों को बर्फ के बीच खड़े रहना पड़ता है…जवानों के चेहरे ठंड से लाल पड़ चुके होंते हैं और शरीर अकड़ने लगता है पर  भारी बर्फबारी में भी जवान हमेशा एक्टिव रहते हैं….ये ना शिकायत करते हैं ना किसी चीज की डिमांड करते हैं…बस कभी कभी भी अपने साथियों के साथ बैठकर एक दूसरे को गांव के किस्से सुना देते हैं या स्कूल कॉलेज के दिनों को याद कर हंस लेते हैं…..

इन सोलजर्स की जिंदगी अपने आप में एक एंडवचर है एक ऐसी नोवल है जिसे आप कितनी बार भी पढ़े हर बार कुछ तो रह ही जाएगा…

तो मेरे जवानों एलओसी पर सोलजर्स की ये लाइफ देखकर आपको कैसा लगा जल्दी से कमेंट में बताओ और ये वीडियो पसंद आया हो तो इस वीडियो को खुद तक मत रखो इसे लाइक करो अपने दोस्तों के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर …आखिर उन्हें भी तो पता चलें कि हमारे जवान एलओसी पर कैसे रहते हैं…..

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